Why Ekadashi is More Than Just a Fast
हिंदू धर्म में एकादशी व्रत का विशेष महत्व है। यह व्रत हर पक्ष (fortnight) के 11वें दिन रखा जाता है और इसे भगवान विष्णु को समर्पित किया गया है।
बचपन में हम सबने देखा होगा कि दादी या माँ एकादशी पर अनाज नहीं खातीं, केवल फलाहार करती हैं। उस समय लगता था कि यह बस एक परंपरा है। लेकिन जब हम आज वेद, आयुर्वेद और आधुनिक विज्ञान की दृष्टि से इसे देखते हैं, तो समझ आता है कि एकादशी का उपवास सिर्फ भोजन छोड़ना नहीं, बल्कि शरीर, मन और आत्मा की गहरी शुद्धि है।
उपवास (Upvaas) का वास्तविक अर्थ
Upvaas का शाब्दिक अर्थ है:
“Up” = निकट (near)
“Vaas” = वास करना (to dwell/stay)
अर्थात् उपवास का मतलब भूखे रहना नहीं, बल्कि भगवान के निकट रहना है।
🌸 “उपवास भोजन का त्याग नहीं, बल्कि अहंकार और विकारों का त्याग है।”
एकादशी की कथा – Ekadashi Devi की उत्पत्ति
पद्म पुराण में कथा आती है कि जब असुर मुर ने धरती पर आतंक फैलाया, तब भगवान विष्णु उससे युद्ध कर रहे थे। युद्ध के दौरान विष्णु जी के शरीर से एक तेजस्विनी देवी प्रकट हुईं। उन्होंने मुरासुर का वध किया।
भगवान विष्णु ने उन्हें “एकादशी देवी” का नाम दिया और वरदान दिया कि जो भी एकादशी के दिन श्रद्धा से व्रत करेगा, उसके सारे पाप नष्ट होंगे, उसे उत्तम स्वास्थ्य और अंततः मोक्ष प्राप्त होगा।
इसलिए इस दिन भक्त विशेष रूप से विष्णु मंत्र का जाप करते हैं:
ॐ नमो भगवते वासुदेवाय
क्यों होती है एकादशी विशेष? (Why the 11th Day Matters)
चंद्रमा का प्रभाव – अमावस्या और पूर्णिमा के बाद 11वां दिन ऐसा होता है जब चंद्रमा का गुरुत्वाकर्षण शरीर और मन को विशेष रूप से प्रभावित करता है।
योगिक दृष्टि – उपवास से शरीर हल्का होता है, प्राणायाम और ध्यान अधिक प्रभावी होते हैं।
आयुर्वेद – “लङ्घनं परम् औषधम्” (Fasting is the best medicine)। उपवास से शरीर का आग्नि संतुलित होता है और दोषों (वात-पित्त-कफ) की शुद्धि होती है।
आधुनिक विज्ञान – Autophagy नामक प्रक्रिया उपवास में सक्रिय होती है, जिसमें शरीर की पुरानी और खराब कोशिकाएँ नष्ट होकर नई ऊर्जा का निर्माण करती हैं।
इस प्रकार जो बात हमारे ऋषियों ने हजारों साल पहले कही, वही विज्ञान आज सिद्ध कर रहा है।
एकादशी व्रत-विधि (How to Observe Ekadashi Vrat)
1. तैयारी (Dashami – एक दिन पूर्व)
सूर्यास्त से पहले साधारण सात्त्विक भोजन करें।
प्याज, लहसुन, मांसाहार और तामसिक भोजन का त्याग करें।
मानसिक रूप से संकल्प लें कि अगले दिन व्रत केवल शरीर नहीं, मन और आत्मा की शुद्धि के लिए रखा जाएगा।
2. व्रत का पालन (Ekadashi Day)
प्रातः ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नान करें।
घर और पूजा-स्थान को स्वच्छ करें। दीपक जलाएँ और भगवान विष्णु का ध्यान करें।
पुजा सामग्री: तुलसीदल, पीला फूल, धूप-दीप, फल, शुद्ध जल, गंगाजल, पंचामृत।
पाठ एवं मंत्र:
विष्णु सहस्रनाम
भगवद गीता के श्लोक
ॐ नमो भगवते वासुदेवाय मंत्र का जप
व्रत के प्रकार:
निर्जला व्रत – बिना अन्न और जल (कठोर, सभी के लिए नहीं)।
फलाहार – फल, दूध, मेवा, नारियल पानी।
सात्त्विक आहार – साबूदाना, सिंघाड़े का आटा, कुट्टू, लौकी, आलू आदि।
3. व्रत-भंग (Dwadashi – अगले दिन)
सूर्योदय के बाद व्रत का पारण करें।
पहले गंगाजल, फल या दूध लें, फिर हल्का सात्त्विक भोजन करें।
गरीब या ब्राह्मण को भोजन कराना श्रेष्ठ माना गया है।
एकादशी व्रत का व्यावहारिक महत्व
स्वास्थ्य के लिए: शरीर हल्का, पाचन तंत्र को विश्राम, विषाक्त पदार्थों की सफाई।
मानसिक शांति के लिए: उपवास से आत्म-नियंत्रण और ध्यान में स्थिरता।
आध्यात्मिक उत्थान के लिए: पाप क्षय, पुण्य की प्राप्ति और मोक्ष का मार्ग।
🌿 आज की युवा पीढ़ी इसे detox & intermittent fasting के रूप में देख सकती है। लेकिन इसके पीछे की आध्यात्मिक शक्ति इसे और अधिक अर्थपूर्ण बनाती है।
2025 की आगामी एकादशी तिथियाँ (Upcoming Ekadashi Vrat 2025)
भाद्रपद मास (September 2025)
पार्श्व एकादशी – 3 सितम्बर, बुधवार
प्रारंभ: 03:53 AM | समाप्ति: 04:21 AM (4 सितम्बर)
इन्दिरा एकादशी – 17 सितम्बर, बुधवार
प्रारंभ: 12:21 AM | समाप्ति: 11:39 PM
अश्विन मास (October 2025)
पापांकुशा एकादशी – 3 अक्टूबर, शुक्रवार
प्रारंभ: 07:10 PM (2 अक्टूबर) | समाप्ति: 06:32 PM
राम एकादशी – 17 अक्टूबर, शुक्रवार
प्रारंभ: 10:35 AM (16 अक्टूबर) | समाप्ति: 11:12 AM (17 अक्टूबर)
कार्तिक मास (November 2025)
देवउठनी एकादशी – 1 नवम्बर, शनिवार
प्रारंभ: 09:11 AM | समाप्ति: 07:31 AM (2 नवम्बर)
वैष्णव देवउठनी एकादशी – 2 नवम्बर, रविवार
उत्पन्ना एकादशी – 15 नवम्बर, शनिवार
प्रारंभ: 12:49 AM | समाप्ति: 02:37 AM (16 नवम्बर)
मार्गशीर्ष मास (December 2025)
मोक्षदा एकादशी – 1 दिसम्बर, सोमवार
प्रारंभ: 09:29 PM (30 नवम्बर) | समाप्ति: 07:01 PM
सफल एकादशी – 15 दिसम्बर, सोमवार
प्रारंभ: 06:49 PM (14 दिसम्बर) | समाप्ति: 09:19 PM
पौष पुत्रदा एकादशी – 30 दिसम्बर, मंगलवार
प्रारंभ: 07:50 AM | समाप्ति: 05:00 AM (31 दिसम्बर)
वैष्णव पौष पुत्रदा / वैकुण्ठ एकादशी – 31 दिसम्बर, बुधवार
एकादशी व्रत केवल अनाज न खाने का नाम नहीं है। यह एक Sacred Pause है - जब हम जीवन की भागदौड़ से रुककर शरीर को शुद्ध करते हैं, मन को शांत करते हैं और आत्मा को भगवान विष्णु के चरणों में समर्पित करते हैं।
👉 विज्ञान इसे autophagy कहता है, आयुर्वेद इसे औषध मानता है, और धर्म इसे मोक्ष का द्वार कहता है।
सभी दृष्टियों से एकादशी व्रत जीवन को संतुलित और दिव्य बनाने का मार्ग है।
अतः अगली बार जब एकादशी आए, इसे केवल परंपरा मानकर न करें, बल्कि इसे चेतना और श्रद्धा के साथ अपनाएँ। यही उपवास की वास्तविक आत्मा है।
ॐ नमो भगवते वासुदेवाय 🙏
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